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इंसानी जिंदगी में सबसे बड़ी समस्याओं में एक अर्थ की होती है और इसके लिए उसे कई स्तर पर संघर्ष भी करना होता है। ग्वालियर के ग्रामीण इलाकों की महिलांए इस संकट से उबरने के लिए संघर्ष कर रही है, साथ ही आत्मनिर्भरता की इबारत भी लिखने में लगी है। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत ग्वालियर जिले में गठित स्व-सहायता समूहों से जुड़ीं दीदियां सामाजिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण के क्षेत्र में नए प्रतिमान गढ़ने में लगी है। इन दीदियों की सफलता की दास्तां अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गईं हैं। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत जिले में अभी तक तीन हजार 296 महिला स्व-सहायता समूह गठित हो चुके हैं। इनसे 36 हजार 945 ग्रामीण परिवार जुड़े हैं। कभी चौका-बर्तन तक सीमित रहीं ये ग्रामीण महिलायें अब आत्मनिर्भर भारत की नई इबारत लिख रही हैं।
ग्राम कल्याणी की रहीसा बेगम बताती हैं कि हमारे परिवार ने बड़ी आर्थिक तंगी में दिन गुजारे हैं। मेरे पति साइकिल पर रोजमर्रा की जरूरतों का सामान लेकर गांव-गांव बेचने जाया करते थे। पर इतना नहीं कमा पाते कि परिवार की गाड़ी आराम से चल जाए। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ने के बाद हमारे परिवार के दिन फिर गए। हमने गांव की महिलाओं के साथ मिलकर अली स्व-सहायता समूह बनाया। समूह की साख बढ़ी तो सरकारी स्कूलों के बच्चों की यूनीफार्म तैयार करने का काम दिया।
रहीसा बेगम बताती है कि दीदी गारमेन्ट के नाम से यूनीफार्म तैयार की। आज हमारे गांव की लगभग 100 महिलाएँ सिलाई-कढ़ाई से जुड़कर आत्मनिर्भर बन गई हैं। अगर पूरे जिले की बात करें तो विभिन्न स्व-सहायता समूहों से जुड़ीं 1200 से अधिक दीदियों ने एक लाख 27 हजार यूनीफॉर्म तैयार कर दो करोड़ 89 लाख रूपए का लाभ कमाया है।
इसी तरह ग्राम छीमक निवासी पुष्पा कुशवाह व ग्राम हस्तिनापुर निवासी रजनी जैतवार अपने गांव में बैंक वाली दीदी के नाम से मशहूर हैं। पुष्पा बताती हैं कि हमारी खुद की दुकान है और गांव की कई महिलाओं को हमने समूहों के जरिए रोजगार दिलाया है। रजनी ने गांव की 80 से अधिक महिलाओं के बैंक में खाते खुलवाए हैं और जरूरतमंदों को बैंक से ऋण भी दिलवाया है।
मशरूम वाली दीदी के नाम से प्रसिद्ध ग्राम समूदन निवासी अनीता जाटव का कहना था कि समूह से मिली मदद के जरिए मशरूम का उत्पादन शुरू किया। शुरूआत में चार क्विंटल तक मशरूम पैदा की। पहली साल 50 हजार रूपए की आमदनी हुई। अनीता से प्रेरणा लेकर आस-पास के आधा दर्जन गांवों की 28 महिलायें मशरूम उत्पादन से जुड़ गई हैं।
अनीता बताती हैं गांव की अन्य महिलाओं के साथ मिलकर स्व-सहायता समूहों के जरिए मशरूम के अलावा दाल, अचार व चिप्स इत्यादि बना रहे हैं, जिससे हम सबको स्थायी आमदनी का जरिया मिल गया है और बैंकों में भी साख बढ़ गई है।
गेहूं उपार्जन के काम से जुड़े ग्राम चीनौर के चाड़ौल माता स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष नारायणी बाथम ने इस साल महिला स्व-सहायता समूहों के माध्यम से सफलतापूर्वक सरकार के गेहूं उपार्जन कार्यक्रम का काम किया है। नारायणी बताती हैं कि पति के असामयिक निधन के बाद जीने का कोई सहारा नहीं दिख रहा था। इस साल ग्वालियर जिले में राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के 14 समूहों द्वारा 2462 किसानों से समर्थन मूल्य पर दो लाख 90 हजार क्विंटल गेहूं का उपार्जन किया गया। गेहूं उपार्जन से दो माह के भीतर 58 लाख रूपए का शुद्ध लाभ कमाया है।
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